पीएम मोदी को सांसदों के एक समूह ने ज्ञापन सौंपा.
नई दिल्ली:
सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने हाल ही में दिए गए एक फैसले में अनुसूचित जाति (SC) और अनुसूचित जनजाति (ST) वर्ग में उप वर्गीकरण और पिछड़ों में भी अति पिछड़ों के हक की बात कही और इसी आधार पर राज्यों को आरक्षण (Reservation) के कोटे में कोटा तय करने का सुझाव दिया. लेकिन कोटे में कोटे का यह मामला सियासी तौर पर इतना संवेदनशील है कि सरकार ने संविधान का हवाला देते हुए क्रीमी लेयर (Creamy Layer) से किनारा कर लिया है. आखिर क्या कारण है कि सरकार सुप्रीम कोर्ट के सुझाव को लेकर संविधान में ऐसा कोई प्रावधान ना होने की बात कर रही है?
सरकार में शामिल तेलगू देशम पार्टी,एनडीए का हिस्सा केंद्रीय मंत्री जीतनराम मांझी के अलावा बीजेपी के कई सांसदों ने सुप्रीम कोर्ट के सुझाव का स्वागत किया है लेकिन पार्टी के ही करीब सौ एससी-एसटी सांसदों ने इसका विरोध किया है. यह सांसद आज पीएम मोदी से मिले और सुप्रीम कोर्ट के सुझाव लागू नहीं करने की मांग की. एनडीए में शामिल लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) के प्रमुख और केंद्रीय मंत्री चिराग पासवान भी कोर्ट के सुझाव से सहमत नहीं हैं.
कोर्ट ने अपने फैसले में यह भी स्पष्ट किया था कि राज्यों को पिछड़ेपन और सरकारी नौकरियों में प्रतिनिधित्व के 'मात्रात्मक और प्रदर्शन योग्य आंकड़ों' के आधार पर उप-वर्गीकरण करना होगा,न कि 'मर्जी' और 'राजनीतिक लाभ' के आधार पर.'
Met a delegation of SC/ST MPs today. Reiterated our commitment and resolve for the welfare and empowerment of the SC/ST communities. pic.twitter.com/6iLQkaOumI
— Narendra Modi (@narendramodi) August 9,2024ज्ञापन में सांसदों ने पीएम से अपील की कि कोर्ट के फैसले को लेकर एससी एवं एसटी समाज में भ्रम है. बताया जाता है कि पीएम मोदी ने सांसदों को विश्वास दिलाया है कि क्रीमी लेयर के तहत वे वर्गीकरण नहीं होने देंगे.
पीएम मोदी ने सांसदों से कहा है कि क्रीमी लेयर को लेकर जो सुप्रीम कोर्ट ने कहा है वह सिर्फ जजों का सुझाव है और उनकी व्यक्तिगत राय है. प्रधानमंत्री ने कहा है कि केंद्र सरकार क्रीमी लेयर को लेकर कोर्ट के सुझाव लागू नहीं करेगी. केंद्र सरकार की तय आरक्षण व्यवस्था जारी रहेगी. कोर्ट के सुझाव का आरक्षण व्यवस्था पर कोई असर नहीं पड़ेगा.
सुप्रीम कोर्ट के सुझाव पर अमल को लेकर एनडीए में शामिल दल ही एकमत नहीं हैं. एलजेपी के नेता और केंद्रीय मंत्री चिराग पासवान का कहना है कि एससी वर्ग को आरक्षण इसमें शामिल जातियों को अस्पृश्यता की पीड़ा झेलने के कारण दिया गया. आर्थिक कारण इस आरक्षण का आधार नहीं है,इसलिए क्रीमी लेयर के आधार पर वर्गीकरण की जरूरत नहीं है. उनका कहना है कि,''हम लोग इस बात को लेकर स्पष्ट हैं कि अनुसूचित जाति का आधार अस्पृश्यता (untouchability) है. इसका कोई शैक्षणिक या आर्थिक आधार नहीं है.''
दूसरी तरफ एनडीए के घटक दल हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा (सेक्यूलर) के अध्यक्ष और केंद्रीय मंत्री जीतनराम मांझी सुप्रीम कोर्ट के फैसले से सहमत हैं. उनका कहना है कि,''जो आदमी बढ़ गया है वह बढ़ते रहे और जो आदमी पीछे है उसकी केयर नहीं की जाए... इसलिए हम हर हालत में सुप्रीम कोर्ट का जो आदेश है उसका स्वागत करते हैं.''
सुप्रीम कोर्ट का सुझाव तर्कसम्मत है लेकिन इसके बावजूद केंद्र सरकार इससे किनारा कर रही है. शुक्रवार को प्रधानमंत्री ने सांसदों से मुलाकात के बाद साफ कर दिया कि क्रीमी लेयर का सुझाव दिया गया है जिसे स्वीकार नहीं किया जाएगा. यह कहकर पीएम मोदी और उनकी सरकार ने दलितों को वह संदेश दे दिया है जो मौजूदा राजनीतिक स्थिति में बेहद जरूरी था.
निकट भविष्य में झारखंड,हरियाणा,महाराष्ट्र और जम्मू कश्मीर में विधानसभा चुनाव होने हैं. इन राज्यों में एससी-एसटी वोटरों की खासी संख्या है. बीजेपी को भय है कि यदि विपक्ष के नैरेटिव को काउंटर नहीं किया गया तो इन चुनावों में बीजेपी को नुकसान हो सकता है.
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