अनिल अंबानी को महंगी पड़ गईं ये 5 गलतियां, ऐसे डूबता गया रिलायंस का कारोबार

2024-08-24 ndtv.in HaiPress

अनिल अंबानी साल 1983 में रिलायंस से जुड़े थे.

नई दिल्ली:

अनिल अंबानी साल 1983 में रिलायंस से जुड़े थे. 2002 में धीरूभाई अंबानी का निधन हो गया. वो अपनी वसीयत बनाकर नहीं गए थे. ऐसे में बड़े भाई मुकेश अंबानी रिलायंस ग्रुप के चेयरमैन और छोटे भाई अनिल अंबानी मैनेजिंग डायरेक्टर बने. 2005 से 2006 के बीच दोनों भाइयों में बिजनेस और प्रॉपर्टी का बंटवारा हुआ. उस समय अनिल अंबानी के पास बड़े भाई मुकेश अंबानी (Mukesh Ambani) से भी ज्यादा संपत्ति थी,लेकिन अनिल अंबानी ने कुछ ऐसे फैसले लिए,जिसकी वजह से उनकी कंपनियों की हालत खराब होती गई. आज ऐसी नौबत आ गई कि अनिल अंबानी पर SEBI को 5 साल का बैन और 25 करोड़ का जुर्माना तक लगाना पड़ा.

आइए जानते हैं अनिल अंबानी से ऐसी कौन-कौन सी गलतियां हो गईं,जिससे उनके कारोबार का बंटाधार हो गया:-

बंटवारे में किसके हिस्से आई कौन सी कंपनी?


प्रॉपर्टी में बंटवारे के बाद मुकेश अंबानी के हिस्से में पैट्रोकैमिकल्स के कारोबार,रिलायंस इंडस्ट्रीज,इंडियन पेट्रोल कैमिकल्स कॉर्प लिमिटेड,रिलायंस पेट्रोलियम,रिलायंस इंडस्ट्रियल इन्फ्रास्ट्रक्चर लिमिटेड जैसी कंपनियां आईं. अनिल अंबानी को आरकॉम,रिलायंस कैपिटल,रिलायंस एनर्जी,रिलायंस नेचुरल रिसोर्सेज जैसी कंपनियां मिलीं.

साल 2006 में अनिल अंबानी,लक्ष्मी मित्तल और अजीम प्रेमजी के बाद भारत के तीसरे सबसे अमीर बिजनेसमैन थे. फिर दुनिया के छठे सबसे अमीर आदमी भी बने. तब उनकी नेटवर्थ मुकेश अंबानी से 550 करोड़ रुपये ज्यादा थी. हालांकि,इसका कुछ खास कमाल नहीं दिखा. जहां मुकेश अंबानी बिजनेस में ग्रो करते चले गए. वहीं,अनिल अंबानी के हिस्से आई कंपनियों की हालत खस्ता होती चली गई. अब जानिएअनिल अंबानी को महंगी पड़ी कौन सी गलतियां:-

गलती नंबर 1- बैकअप प्लान की कमी


अनिल अंबानी के पास बैकअप प्लान की कमी थी. जब रिलायंस ग्रुप का बंटवारा हुआ तब अनिल अंबानी के पास टेलीकॉम,एनर्जी और फाइनेंस जैसे कारोबार मिले लेकिन बहुत जल्दबाजी में बिना किसी सटीक प्लानिंग के आगे बढ़ने के लिए कई कदम उठाए,जो लाभ की बजाय उन पर भारी पड़ गए.

रिलायंस पावर के पास पाइपलाइन में कई प्रोजेक्ट्स थे. अपने गैस प्लांट के लिए कंपनी 2.34 डॉलर प्रति mmBtu की निश्चित गैस कीमत पर निर्भर था. जिसे मुकेश अंबानी की रिलायंस इंडस्ट्रीज से दिया जाना था. हालांकि,एक सरकारी फैसले की वजह से गैस की कीमत बढ़ाकर $4.2 mmBtu कर दी गई. इससे लागत एकदम से बढ़ गई. अनिल अंबानी ने रिलायंस इंडस्ट्रीज की नए रेट को अदालत में चुनौती दी,लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने सप्लाई वैल्यू के अंतिम निर्धारक के रूप में सरकारी नीति के पक्ष में फैसला सुनाया. इसके नतीजे के रूप में अनिल अंबानी की कंपनियों के कई प्रोजेट्स बीच में ही अटक गए. इससे निवेश भी अटके रहे.


गलती नंबर 2- टेक्नोलॉजिकल बदलावों को समझने में फेल रहे


तेजी से बढ़ते टेलीकॉम मार्केट में अनिल अंबानी के कंपनियों की बड़ी हिस्सेदारी थी. रिलायंस कम्युनिकेशंस अनिल अंबानी के पोर्टफोलियो का एक महत्वपूर्ण हिस्सा था. हालांकि,कंपनी ने 2जी और 3जी तक सीमित CDMA टेक्नोलॉजी पर ही दांव लगाया. जबकि टेलीकॉम सेक्टर का भविष्य एक अलग तकनीक (LTE) पर आधारित 4जी में था. यानी अनिल अंबानी कम्युनिकेशंस के बिजनेस में होकर भी टेक्नोलॉजिकल बदलावों को समझने में फेल रहे.

गलती नंबर 3- फैसले लेने में देरी


बिजनेस की दुनिया का किंग बनने के लिए अनिल अंबानी ने तब एनर्जी से लेकर टेलीकॉम सेक्टर के जिन प्रोजेक्ट्स पर पैसा खर्च कर रहे थे,उनमें लागत अनुमान कहीं ज्यादा थे और रिटर्न न के बराबर. बावजूद इसके उन्होंने अपनी रणनीति में बदलाव करने में देरी की. अनिल अंबानी ने बिना तैयारी के बैक टू बैक नए प्रोजेक्ट्स में पैसे लगाए,जिससे उनके ऊपर कर्ज बढ़ता गया और मुसीबतें बढ़ती गईं.

गलती नंबर 4- फोकस में कमी


कई एक्सपर्ट्स का मानना है कि अनिल अंबानी आज जिस जगह हैं,उसका एक बड़ा कारण है फोकस की कमी भी है. अनिल अंबानी का पूरा फोकस कभी एक कारोबार पर रहा ही नहीं. वो एक बिजनेस शुरू करते थे. लेकिन उसे वक्त नहीं देते थे और दूसरे बिजनेस में शिफ्ट कर जाते थे. ये सिलसिला चलता रहता था.

मार्केट एक्सपर्ट्स बताते हैं,जब अनिल अंबानी ने बिना सोचे-समझे प्रोजेक्ट्स में पैसे लगाए,तो उन्हें पूरे करने के लिए एडिशनल एक्विटी और देनदारों से कर्ज लेना पड़ा. इससे कॉस्टिंग लगातार बढ़ती गई. रिटर्न के नाम पर कुछ हाथ नहीं आया. ओवरऑल कर्ज का बोझ बढ़ता ही गया. जिससे उनकी कई कंपनियां बिकने के कगार पर पहुंच गईं.

गलती नंबर 5: कथनी और करनी में अंतर


अनिल अंबानी की बिजनेस आइडिया,ऐलान तो बड़े धाकड़ होते थे. उनपर काम वैसी तेजी से नहीं होता था जैसे होना चाहिए. दिसंबर 2017 में अनिल अंबानी ने अपनी ऋण कटौती योजना (Debt Reduction Plan) के बारे में प्रेस के सामने बड़ी-बड़ी घोषणाएं कीं. उन्होंने ये दावा भी किया कि इनसे चीजें सही होंगी. उनके फैसले एक गेम-चेंजर और कॉर्पोरेट भारत के लिए एक आदर्श साबित होंगे. हालांकि,वास्तविकता बिल्कुल अलग थी. अनिल अंबानी की कंपनियों के कर्ज लेने में कोई कमी नहीं आई. रिडक्शन प्लान पर कोई काम ही नहीं हुआ.

वास्तव में अनिल अंबानी ने ज्यादातर फैसले महत्वाकांक्षा के चक्कर में लिए. वह बिना किसी रणनीति के कॉम्‍पिटीशन को देखते हुए किसी भी कारोबार में कूद जाते थे. जिसका परिणाम रहा कि 2008 की ग्लोबल मंदी में उन पर इतना कर्ज हो गया कि दोबारा से संभलने का मौका ही नहीं दिया.


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