2025-01-13 HaiPress
उत्तराखंड के गढ़वाल में खिचड़ी उड़द की दाल,तिल और गर्म मसाले के साथ तैयार की जाती है.
नई दिल्ली:
भारत में मकर संक्रांति पर्व के अवसर पर विभिन्न प्रांतों में प्रसाद के रूप में खिचड़ी खाई जाती है. कहीं इसे ताई पोंगल,कहीं खेचड़ा,कहीं माथल तो कहीं बीसी बेले भात कहा जाता है. नाम चाहे कुछ भी हो लेकिन इसे खाने का असली मजा दही,घी,पापड़ और अचार के साथ ही आता है. कहा भी गया है-खिचड़ी के चार यार -दही,पापड़ और अचार. खिचड़ी मुगल बादशाह जहांगीर और औरंगजेब को भी बहुत पसंद थी. इतना ही नहीं,अंग्रेज भी भारत से इस पोषक आहार को ब्रिटेन लेकर गए थे जहां आज यह नाश्ते में शौक से खायी जाती है.
किताब में बताया गया है कि यूनानी राजदूत सेल्यूकस ने भारतीय उप महाद्वीप में दाल और चावल की लोकप्रियता के बारे में उल्लेख किया है,साथ ही मोरक्को के यात्री इब्नबतूता ने भी 1550 के अपने भारतीय प्रवास के दौरान चावल और मूंग से बने व्यंजन के रूप में खिचड़ी का वर्णन किया है.
किताब में दावा किया गया है कि खिचड़ी की परंपरा इतनी पुरानी है कि 15वीं शताब्दी में भारत की यात्रा करने वाले अफानासी निकितिन ने भी खिचड़ी पर अपनी कलम चलाई. किताब के अनुसार,‘‘ खिचड़ी मुगल साम्राज्य,विशेष तौर पर जहांगीर के समय में बहुत लोकप्रिय थी. यहां तक कि औरंगजेब को भी खिचड़ी बहुत पसंद थी."
खिचड़ी पर लेख के अनुसार,कन्याकुमारी से लेकर खीर भवानी तक,कोटेश्वर से कामाख्या तक,जगन्नाथ से केदारनाथ तक,सोमनाथ से काशी विश्वनाथ तक,सम्मेद शिखर से श्रवणबेलगोला तक,बोधगया से सारनाथ तक,अमृतसर से पटना साहिब तक,अंडमान से अजमेर तक,लक्षद्वीप से लेह तक,पूरा भारत किसी न किसी तरह से खिचड़ी का प्रेमी है.
किताब कहती है कि "खिचड़ी एक ऐसा भोजन है जिसमें बहुत लचीलापन है. शैशवकाल का पहला भोजन खिचड़ी ही होता है. जीवन के अंतिम क्षणों में भी खिचड़ी का ही सहारा होता है. बीमार होने पर या बीमारी के बाद भी खिचड़ी एक सुपाच्य भोजन के रूप में पाचनतंत्र पर महरम की तरह काम करती है.''
किताब कहती है कि इस प्रकार पूरे भारत में खिचड़ी एक उत्सव का नाम है. मृत व्यक्ति की स्मृति में पहला गोग्रास छोड़ना हो तो भी खिचड़ी. और अब तो लग्जरी रिजार्ट के एग्जॉटिक मेन्यू में भी प्रमुख स्थान पा चुकी है खिचड़ी. लेख में खिचड़ी को लेकर प्रचलित मुहावरा ‘बीरबल की खिचड़ी' का जिक्र करते हुए कहा गया है कि मुगल सम्राट अकबर के समय में भी खिचड़ी प्रचलित रही होगी.
लेख में उस दंतकथा का भी उपयोग किया गया है जिसके अनुसार,अपने कुछ असफल अभियानों के बाद अपनी सामरिक रणनीति को बदलने की प्रेरणा मराठा योद्धा शिवाजी को खिचड़ी से ही मिली थी. ऐसी ही कुछ कहानी महाराणा प्रताप के बारे में भी है -यानि मेवाड़ से मराठवाड़ा तक खिचड़ी का एकछत्र प्रताप.
‘पोषण उत्सव' में देश के विभिन्न राज्यों में खिचड़ी से जुड़े त्यौहारों और उनमें इस्तेमाल किए जाने वाले अन्य अन्न और मसालों का भी विस्तार से ब्यौरा दिया गया है. किताब में बताया गया है कि हिमाचल प्रदेश में आला/बाला खिचड़ी चना,भुना हुआ धनिया और छाछ के साथ बनायी जाती है जबकि उत्तराखंड के गढ़वाल में खिचड़ी उड़द की दाल,तिल और गर्म मसाले के साथ तैयार की जाती है.
किताब के अनुसार,उत्तर प्रदेश में आंवला खिचड़ी बहुत लोकप्रिय है तो वहीं ओडिशा में खिचड़ी को खेचड़ा कहा जाता है जहां आमतौर पर इसे अदरक और हींग के साथ बनाया जाता है. जगन्नाथ मंदिर के महाप्रसाद में भी खिचड़ी एक महत्वपूर्ण व्यंजन है. कई जगह पर खिचड़ी को अचार,दही,आलू भर्ता,बैंगन भर्ता,दालमा और चटनी के साथ परोसा जाता हैय
पोषण उत्सव के अनुसार,आंध्र प्रदेश में संक्रांति व अन्य त्यौहारों पर मुख्य भोजन खिचड़ी ही होता है. यहां काजू के इस्तेमाल के कारण खिचड़ी गरिष्ठ होती है. केरल में इस खिचड़ी को माथन कहा जाता है और इसमें माथन यानि के लाल कद्दू मुख्य सामग्री होती है. इस प्रदेश में इमली,नारियल और करी पत्ता इसकी पौष्टिकता में और इजाफा कर देते हैं.
ऐसा कहा जाता है कि राजस्थान में सैनिकों के लिए खिचड़ी मुख्य आहार था और इसके लिए गांव वालों से अलग से लगान लिया जाता था जिसे ‘खिचड़ा लाग' कहा जाता था. किताब के अनुसार,गुजरात जैसे कुछ बड़े राज्यों में विभिन्न हिस्सों में खिचड़ी के नाम बदल जाते हैं. गुजरात के काठियावाड़ में राम खिचड़ी,सूरत में सोला खिचड़ी और पारसी समुदाय में भड़ूची वाघरेली खिचड़ी चाव से खायी जाती है.
(इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)