2025-04-18
HaiPress
उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ और सुप्रीम कोर्ट.
नई दिल्ली:
राष्ट्रपति और राज्यपालों को विधेयकों को मंजूरी देने के लिए समय सीमा निर्धारित करने वाले सुप्रीम कोर्ट के ऐतिहासिक फैसले के कुछ दिनों बादउपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने न्यायपालिका के लिए कड़े शब्दों का इस्तेमाल करते हुए कहा कि हम ऐसी स्थिति नहीं बना सकते जहां अदालतें राष्ट्रपति को निर्देश दें. उन्होंने यह भी कहा कि संविधान का अनुच्छेद 142 लोकतांत्रिक ताकतों के खिलाफ एक परमाणु मिसाइल बन गया है. मालूम हो कि संविधान का अनुच्छेद 142 सुप्रीम कोर्ट को यह अधिकार देता है कि वह पूर्ण न्याय करने के लिए कोई भी आदेश,निर्देश या फैसला दे सकता है,चाहे वह किसी भी मामले में हो.
पिछले सप्ताह उच्चतम न्यायालय ने पहली बार यह निर्धारित किया था कि राष्ट्रपति को राज्यपाल द्वारा विचारार्थ सुरक्षित रखे गए विधेयकों पर संदर्भ प्राप्त होने की तिथि से तीन माह के भीतर निर्णय लेना चाहिए.
राज्यसभा के प्रशिक्षुओं के एक समूह को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा,‘‘हमारे पास ऐसे न्यायाधीश हैं जो कानून बनाएंगे,जो कार्यपालिका का कार्य स्वयं संभालेंगे,जो ‘सुपर संसद' के रूप में कार्य करेंगे और उनकी कोई जवाबदेही नहीं होगी,क्योंकि देश का कानून उन पर लागू नहीं होता.''
Parliament cannot script a judgement of a court. Parliament can only legislate and hold institutions,including Judiciary and Executive,accountable.
Judgement writing,adjudication,is the sole prerogative of Judiciary,as much as legislation is that of the Parliament. But… pic.twitter.com/FTy767hzDo
— Vice-President of India (@VPIndia) April 17,2025
धनखड़ ने कहा कि उनकी चिंताएं ‘‘बहुत उच्च स्तर'' पर हैं और उन्होंने ‘‘अपने जीवन में'' कभी नहीं सोचा था कि उन्हें यह सब देखने का अवसर मिलेगा. उन्होंने उपस्थित लोगों से कहा कि भारत में राष्ट्रपति का पद बहुत ऊंचा है और राष्ट्रपति संविधान की रक्षा,संरक्षण एवं बचाव की शपथ लेते हैं,जबकि मंत्री,उपराष्ट्रपति,सांसदों और न्यायाधीशों सहित अन्य लोग संविधान का पालन करने की शपथ लेते हैं.
Let me take incidents that are most recent. They are dominating our minds. An event happened on the night of the 14th and 15th of March in New Delhi,at the residence of a judge. For seven days,no one knew about it. We have to ask questions to ourselves: Is the delay… pic.twitter.com/fqiT8t5a3l
— Vice-President of India (@VPIndia) April 17,2025
उन्होंने आगे कहा,"तीन न्यायाधीशों की एक समिति मामले की जांच कर रही है,लेकिन जांच कार्यपालिका का क्षेत्र है,जांच न्यायपालिका का क्षेत्र नहीं है,क्या समिति भारत के संविधान के तहत है? नहीं. क्या तीन न्यायाधीशों की यह समिति संसद से निकले किसी कानून के तहत कोई स्वीकृति रखती है?"
उन्होंने आगे कहा "हम ऐसी स्थिति नहीं रख सकते जहां आप भारत के राष्ट्रपति को निर्देश दें और वह भी किस आधार पर? संविधान के तहत आपके पास केवल एक अधिकार है अनुच्छेद 145(3) के तहत संविधान की व्याख्या करना. वहां पांच या अधिक न्यायाधीश होने चाहिए. लड़के और लड़कियों,जब अनुच्छेद 145(3) था,तो सुप्रीम कोर्ट में न्यायाधीशों की संख्या आठ थी,8 में से 5,अब 30 और कुछ में से 5. लेकिन इसे भूल जाइए,न्यायाधीशों ने जो वस्तुतः राष्ट्रपति को एक आदेश जारी किया और एक परिदृश्य प्रस्तुत किया यह देश का कानून होगा,संविधान की शक्ति को भूल गए हैं.